
ऐसा नहीं लगता इस समय जैसे,
समय ने समय पे गौर करने को समय दे दिया है?
मुश्किल की घडी में उम्मीद और हौसला तो कायम रखना ही है,
और जितना हो सके उतना एक दूसरे की सहायता भी करनी है.
बंद देश के हालत के साथ,
बंद है रोज़ी रोटी सैकड़ो की.
अगर आपको तक़लीफ सिर्फ कंटालेपन और पानीपुरी पिज़्ज़ा न खा पाने की हो तो खुशनसीब मानना खुदको,
कुछ ही गली दूर, लोग भुखमारी से गुज़र रहे है और कुछ आमदनी न होने से आत्महत्या कर रहे है.
सक्षम वर्ग को सरकारी पैसो से देश में लाया गया,
और जिस असहाय वर्ग को वाकई ज़रूरत थी सरकार की,
वह लाचारी का एक और बोझ लिए पैदल ही निकल पड़े गांव के लिए.
समाज का नज़र में आया एक आवरण,
जहां कोई चलते-झुंजते जान गवा रहा था,
तो कोई घर के आराम में कभी थाली बजा रहा था, कभी दिए जला रहा था.
अनेकता में एकता का प्रतिक सिर्फ एकता दिखाने से हो सकता है,
एकता दिखाने का एकमात्र जरिया है, एक-दूसरे को सहायता देना,
बंद देश के साथ सवाल पूछना भी बंद है,
और है भावनाओ पे रची राजनीती जोरो से चालू…
सलाम है कई निस्वार्थ पेशेवर वर्ग को:
बिना हथियार के जंग लड़ रहे उन डॉक्टरों को,
जनता को घर में बिठाये रखने में पुलिस के जुगाड़ों को,
दुकानदारों को, सफाई कर्मचारियों को,
दिल से आशीष है इन लोग को, इन्हे सहारा, सुरक्षा और शक्ति मिले;
सुनेहरें होंगे इनके होसलें भी, जो जान बचाने अपनी जान की परवाह करना छोड़ दिए है.
ये समय बहुत भारी है सबके लिए अपने ही तरीकें से,
शांत रहना ज़रूरी है, मानसिक स्थिरता पे काम करना ज़रूरी है.
खबरें पढ़ने का फायदा है जानकारी रखना, भयभीत होना नहीं.
रियल-लाइफ ड्रामा एन्जॉय करें, झाड़ू- बर्तन करने में खुश रहे,
कठिन दौर है, पर हमेशा के लिए नहीं है,
गुज़र जानेदो इसको भी, प्रबलता के साथ इसको बनातें है ऐतिहासिक जीत.
GO CORONA GO!
Lovely
बहुत उम्दा, क्या खूब लिखा है 👌 अभी के चलते हालत और लोगो की दिनचर्या का इससे अच्छा कोई वर्णन और कुछ हो ही नहीं सकता।।
उम्दा!
👌