
Motivational | Poem
फल की अपेक्षा मत कर…
जिसकी याद कर्म कर्म में छिपी ;
वह बोला था धैर्य रख ,
कर्म किये जा,फल की अपेक्षा मत कर.
चेहरों के मोल जहाँ, वहाँ निर्वाह की बात कहाँ ,
पैसों का लोभ जहाँ, वहाँ धर्म की बात कहाँ;
फिर भी निर्वाह तू एकाग्र करे जा, धर्म तू निभाए जा,
कर्म किए जा, फल की अपेक्षा मत कर.
मुसाफिर हैं हम, काम हैं केवल सफ़र करना,
घर बना के बस गये हैं कहाँ , रिश्तो में उलझ कर,
सलामती की चिंता त्याग चल निकले नये वस्ल को तराशने;
बस कर्म किए जा, फल की अपेक्षा मत कर.
सारी रूहानियत दिखती हैं जिनमे,
उनसे इश्क़ के मिसाल कायम किए जा
बात बने तो बने, बिगड़े तो बिगड़े,
कर्म किए जा, फल की अपेक्षा मत कर.
लोहे को लोहा काट ता हैं, नफ़रत को प्यार,
आज इंसान को इंसान काट रहा हैं, इंसानियत को भ्रष्टाचार,
मत बन मूरत अबोल, अकेले ही सही, जंग लड़े जा,
कर्म किए जा, फल की अपेक्षा मत कर.
जिस दिन होगा तुझे तुझसे पहचान, कौन तुझे रोक पाएगा?
क्या अमीरी क्या ग़रीबी, गिले–शिकवे तो दूर की बात,
तू सिफ़र के घेरे इज़्तिरार में भी मौतज़ा पाएगा,
बस कर्म किए जा, फल की अपेक्षा मत कर.
MEANINGS:
दोहराती- to repeat ; निर्वाह;quality/character; एकाग्र: integrity/focus/add on ; वस्ल:passion; रूहानियत:soulfulness ; सिफ़र:nothingness ; इज़्तिरार: helplessness ; मौतज़ा: miracle
MEANINGS:
दोहराती- to repeat ; निर्वाह;quality/character; एकाग्र: integrity/focus/add on ; वस्ल:passion; रूहानियत:soulfulness ; सिफ़र:nothingness ; इज़्तिरार: helplessness ; मौतज़ा: miracle
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बहुत बेहतरिन सोच और कविता,
बेहतरिन जिवन के लिए बेहतरिन नजरिया होना चाहिए,
बस कर्म किए जा, फल की अपेक्षा मत कर, अति उतम !!
Lovely written
I love it mads
Woah! Once again Bang on blog!
Keep writing n keep inspiring us.